बंगाल द्वारा आलू निर्यात पर रोक के बाद आलू उत्पादन में बोकारो को आत्मनिर्भर बनेगा की तैयारी
इस वित्तीय वर्ष में 1646.5 एकड़ भूमि पर हो रहा आलू की खेती, पलाश (JSLPS) की महिला समूह सदस्य कर रही खेती
Bokaro :
पश्चिम बंगाल से आने वाले आलू पर बंगाल सरकार द्वारा रोक लगाने व विवाद उत्पन्न होने के बाद बोकारो जिला में आलू उत्पादन को बढ़ाने को लेकर जिला प्रशासन ने कवायद शुरू कर दी है. आने वाले कुछ वर्षों में बोकारो जिला आलू उत्पादन को लेकर आत्मनिर्भर बन जाएगा. इस कार्य में पलाश (जेएसएलपीएस) की महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य काम कर रही है. इसको लेकर जिला प्रशासन द्वारा उन्हें हर संभव सहयोग किया जा रहा है. वित्तीय वर्ष 2023-24 में जहां जेएसएलपीएस से जुड़े 7,626 महिला किसान 152.68 एकड़ भूमि पर आलू की खेती कर 1145.10 टन आलू उत्पादन किया गया. वहीं, उपायुक्त विजया जाधव के पहल पर वित्तीय वर्ष 24-25 में 27,410 महिला किसानों ने 1646.5 एकड़ में आलू की खेती की है. महिला किसानों द्वारा 6120.35 टन आलू उत्पादन किया गया है.
उपायुक्त ने आलू उत्पादन कर रही महिला किसानों को कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) पेटरवार को तकनीकी सहयोग देने के का निर्देश दिया है. साथ ही जिला कृषि पदाधिकारी को धान कटनी के बाद आलू की खेती करने के लिए किसानों एवं फार्मर प्रोडक्शन ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) को प्रेरित करने का निर्देश दिया है. उन्होंने आलू उत्पादन बढ़ाने की रणनीति पर जिला कृषि पदाधिकारी, जिला उद्यान पदाधिकारी, जेएसएलपीएस डीपीएम आदि को कार्य करना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.
किसानों को निम्न बातों पर ध्यान देने का अपील किया –
उन्नत किस्मों का चयन – ऐसी आलू की किस्में चुनें जो स्थानीय जलवायु और मिट्टी के लिए उपयुक्त हों. उन्नत किस्में जैसे कुफरी ज्योति, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी आलंकार और कुफरी पुखराज को प्राथमिकता दें, क्योंकि ये रोग प्रतिरोधी और अधिक उत्पादन देने वाली होती हैं.
मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार – मिट्टी परीक्षणः खेत की मिट्टी की जांच और उसकी उर्वरता को समझना. संतुलित उर्वरकों का उपयोग. मिट्टी के स्वास्थ्य के अनुसार नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटाश (के) की सही मात्रा में उपयोग. जैविक खाद के तौर पर गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट, हरी खाद का उपयोग ताकि मिट्टी की संरचना और सूक्ष्म पोषक तत्वों में सुधार हो.
सिंचाई और जल प्रबंधन – आलू के लिए उचित नमी बनाए रखना आवश्यक है. फव्वारा सिंचाई या ड्रिप सिंचाई अपनाएं ताकि जल का सही उपयोग हो. फसल के बढ़ने के दौरान 5-6 बार सिंचाई, विशेष रूप से कंद बनने के समय पर ध्यान देना की आवश्यकता है.
फसल चक्र और मिश्रित खेती – खेत में फसल चक्र अपनाएं ताकि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी न हो. आलू के साथ दलहनी फसलें (जैसे मूंग, चना) उगाएं. इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ेगी.
कीट और रोग प्रबंधन – बीज उपचार के तहत बुवाई से पहले आलू के बीजों को फफूंदनाशक और कीटनाशकों से उपचारित करना. जैविक नियंत्रण के तहत रोगों को रोकने के लिए नीम तेल और ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक उपाय अपनाना. नियमित रूप से फसल की जांच और शुरुआती लक्षण दिखने पर उचित उपचार करना.
खेती के आधुनिक तरीकों का उपयोग- आलू के कंद को 8-10 सेमी की गहराई पर बोया जाय. समय पर पौधे की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाने से कंदों का आकार और संख्या बढ़ती है. खेती में ट्रैक्टर और मशीनों का उपयोग जिससे श्रम की बचत हो और उत्पादन समय पर हो.
प्रशिक्षण और जागरूकता – किसानों को आलू उत्पादन की आधुनिक तकनीकों पर नियमित प्रशिक्षण. कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और कृषि विभाग से संपर्क. सामूहिक खेती और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) से जुड़कर नई तकनीकों की जानकारी प्राप्त करना.
विपणन और मूल्य संवर्धन – आलू की उचित भंडारण व्यवस्था, ताकि खराबी से बचा जा सके. आलू से बने उत्पादों (चिप्स, फ्रेंच फ्राइज) की प्रोसेसिंग कर अधिक मूल्य प्राप्त करना. सीधा उपभोक्ताओं तक पहुंचने के लिए किसान बाजार या डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करें.
शिकायत के लिए टोल फ्री नंबर :-
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