गांवों में सोहराय परब: बरदखूंटा में अटखेलियां की धमाचौकड़ी 

गांवों में सोहराय परब: बरदखूंटा में अटखेलियां की धमाचौकड़ी 
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सियालजोरी में बदरखूंटा
Bokaro:
झारखंडी संस्कृति का परब सोहराय को लेकर चास, चंदनकियारी, कसमार, पेटरवार, गोमिया, बेरमो, नावाडीह, चंद्रपुरा आदि क्षेत्र के ग्रामीण उत्साहित हैं. गांव-घर में आदिवासी सहित कृषक परिवार पूजा अर्चना कर पारंपरिक रूप से उत्सव मनाने में जुटे हुए है. मेहमानों का आवागमन भी खूब हो रहा है. सोहराय परब झारखंड के  कृषक परिवारों के लिए सबसे बड़ा त्योहार है. कृषि और पशुपालन से जुड़े ग्रामीण क्षेत्रों में सोहराय के गीतों की गूंज सुनी जा सकती है. सोहराय के दौरान क्रमशः गौ जागरण, गौरैया पूजन, गोठपूजन, गौशाला पूजन, गौचुमावन एवं सोहराय गीतों पर मांदर के थापों पर बरदखूंटा का आयोजन किया गया . जिला के विभिन्न प्रखंडों के दर्जनों गावों में बरदखूंटा का आयोजन किया जाता है.
सोहराय पर्व फसल पकने के बाद धान कटनी की खुशी में मनाया जाता है. हर्ष और उल्लास के साथ छह दिनों तक चलने वाला यह पर्व कृषि से जुड़ा है. किसान द्वारा कृषि के संसाधनों जैसे हल, बैल, गौ धन एवं घर पहुंचे धान की नई फसल का आदर भक्ति के साथ आराधना कर कृतज्ञता प्रकट की जाती है. इन छह दिनों में पशुधन की खूब सेवा के साथ साज-सज्जा किया जाता है. इस क्रम में छह दिनों तक नियमित बैलों के सिंग पर तेल (कोचरा का तेल) लगाने का रस्म है.
गौ जागरण – गौ धन को सोहराय गीतों के माध्यम से मंगल गीत गाए जाते की परंपरा रही है. इन गीतों के माध्यम से पशुधन बढ़े, घर में गौ माता का संबर्धन हो, दूध की धारा बहे, इस कामना के साथ अमावस्या की रात गौ जागरण का प्रावधान है. सोहराय के गीतों से गोधन के प्रति आदर का भाव का संदेश है.
गोरइया पूजा – दूसरे दिन गोरइया पूजा की परम्परा है, इससे पूर्व गौशाला, गौठपूजा, के साथ-साथ हल- जुआंठ की पूजा, धान की नई बाली से बैलों को सजाया जाता है. महिलाओं द्वारा चुमावन व आरती उतारी जाती है. चावल से बने पीठा का भोग चढ़ाया जाता है . यह पर्व हर कृषक परिवारों के साथ-साथ आदिवासी समुदायों में बिशेष रूप से मनाये जाने की परंपरा रही है.
 बरद खूंटा का आयोजन – इस अवसर पर सबसे रोमांचित करने वाला आयोजन बरद खूंटा है. इसमें बैल को खूंटे से बांधकर सोहराय के गीतों पर मांदर की थाप पर नचाया जाता है. कहा जाता है कि मानव सभ्यता का विकास  अन्न उत्पादन की कला सीखने के साथ हुआ. कृषि के साथ पशुपालन कर व्यवस्थित ढंग से जीना सीखा. तब से ही इसे एक उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है. आदि गुरू मारांग बुरू, महामाया गोसाईं राईं (भगवान शिव) की कृपा हुई, मनुष्य ने अन्न उत्पादन करना सिखा. गाय की दूध से अपने बच्चों को पुष्टिकारक आहार मिला. अन्न से क्षुधा शांत हुई. उन सभी के  प्रति आभार, आस्था और कृतज्ञता प्रकट करने का महान पर्व सोहराय है.

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