आनंद मार्ग धर्म महा सम्मेलन: दूसरे दिन की शुरुआत आध्यात्मिक प्रवचन और सामूहिक ध्यान से
Bokaro : आनंद नगर में आयोजित तीन दिवसीय आनंद मार्ग धर्म महा सम्मेलन के दूसरे दिन का कार्यक्रम अत्यंत आध्यात्मिक और प्रेरणादायक रहा। इस दिन की शुरुआत प्रभात संगीत और सामूहिक ध्यान के गायन से हुई, जो सभी उपस्थित अनुयायियों के मन और आत्मा को शांति और एकता का अनुभव कराता है। यह कार्यक्रम आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जो समय-समय पर ऐसे आध्यात्मिक आयोजनों का आयोजन करता है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ जोड़ने और आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
आचार्य विकासानंद अवधूत का आध्यात्मिक प्रवचन
सम्मेलन के दूसरे दिन के मुख्य वक्ता मार्ग गुरु प्रतिनिधि, आचार्य विकासानंद अवधूत ने श्रीश्री आनंदमूर्तिजी के दर्शन पर आधारित गहन आध्यात्मिक प्रवचन प्रस्तुत किए। उनके प्रवचन ने न केवल धर्म और आध्यात्मिकता की गहरी समझ को उजागर किया, बल्कि यह भी बताया कि मनुष्य के आत्मिक और मानसिक विकास के विभिन्न चरणों को किस प्रकार समझा जा सकता है। आचार्य विकासानंद अवधूत ने अपने प्रवचन में परम आनंद की अवधारणा और मनुष्य की आत्मिक यात्रा पर विस्तार से चर्चा की।
आध्यात्मिक प्रवचन की शुरुआत
आचार्य ने शुरुआत करते हुए बताया कि परम आनंद क्या है और इसे प्राप्त करने के लिए मनुष्य को किस मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आदिमानव ने अपने जीवन में पूजा-अर्चना की शुरुआत की, और यह प्रक्रिया धीरे-धीरे अवतारवाद सिद्धांत की ओर अग्रसर हुई। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मानव हृदय की आकांक्षाएं असीमित हैं और इन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य ने एक नए दार्शनिक दृष्टिकोण को अपनाया।
मनुष्य की आत्मिक यात्रा और ब्रह्मज्ञान
आचार्य ने यह बताया कि मनुष्य ने अनंत ब्रह्म का अनुभव करने के लिए दार्शनिक विचार और शोध किया। धीरे-धीरे मानव मस्तिष्क ने यह समझा कि इस एकात्मक उपासना के माध्यम से अनादि, अविभाज्य, परम आनंदमय आत्मा को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने ऋग्वेद और यजुर्वेद के संदर्भ में इस प्रक्रिया के संकेत दिए, और बताया कि उस शुभ क्षण में मानव बुद्धि ने यह देखा कि भौतिक दुनिया में जो कुछ भी इच्छित है, वह परम परमानंद से उत्पन्न होता है।
धर्म और आडंबर की आलोचना
आचार्य ने यह स्पष्ट किया कि सामान्य लोग गहन ब्रह्मतत्व या सहजज्ञान सिद्धांत को समझ नहीं पाए, और इसके कारण धर्म के बाहरी और आडंबरपूर्ण पहलुओं को अपनाया। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भौतिक आवश्यकताओं को पूरी तरह से नकारा करना संभव नहीं है, लेकिन भौतिक वस्तुओं के प्रति अनावश्यक आसक्ति को छोड़ना अत्यंत आवश्यक है।
आध्यात्मिक शांति और परम आनंद की प्राप्ति
आचार्य ने यह संदेश दिया कि मनुष्य के लिए स्थूल आवश्यकताओं से अधिक महत्वपूर्ण उसकी आत्मा की गहरी भूख को समझना और संतुष्ट करना है। जब मनुष्य यह समझता है कि वह परम आत्मा की छवि है, तो वह अपने जीवन में आनंद और शांति का अनुभव कर सकता है।
आचार्य ने यह भी बताया कि मनुष्य के लिए यह जरूरी है कि वह अपने अंदर की आसक्ति और सुख की प्रवृत्तियों को समाप्त कर परम आनंद की ओर अग्रसर हो। उन्होंने यह कहा कि हर चीज में दिव्यता का अनुभव करके, मनुष्य अपनी सीमित सोच को समाप्त कर सकता है और परम आनंद का अनुभव कर सकता है।
समाप्ति और संदेश
आध्यात्मिक प्रवचन के अंत में, आचार्य ने यह संदेश दिया कि जीवन में केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति से संतुष्ट होना पर्याप्त नहीं है। केवल जब मनुष्य अपनी आत्मिक यात्रा को समझता है और परम आनंद की प्राप्ति के मार्ग पर चलने की कोशिश करता है, तब उसे सच्चे सुख और शांति का अनुभव होता है।
इस प्रकार, आनंद मार्ग धर्म महा सम्मेलन का यह दिन न केवल एक आध्यात्मिक यात्रा की ओर प्रेरणा देने वाला था, बल्कि यह भी हमें यह सिखाता है कि हर इंसान को अपनी आत्मा की गहराई में जाकर, आंतरिक शांति और परम आनंद की प्राप्ति की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।