बिहार में जनजातीय गौरव दिवस पर पीएम का संदेश , कहा भगवान बिरसा मुंडा हमारे पथ प्रदर्शक
———————————
पिछले वर्ष आज के दिन मैं धरती आबा बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में था। आज उस धरती पर आया हूं, जिसने शहीद तिलका मांझी का शौर्य देखा है। लेकिन इस बार का ये आयोजन और भी खास है। आज से पूरे देश में भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जन्मजयंती के उत्सव शुरू हो रहे हैं। ये कार्यक्रम अगले एक साल तक चलेगा। मुझे खुशी है कि आज देश के सैंकड़ों जिलों के करीब एक करोड़ लोग, जरा जमुई के लोग गर्व करिये, ये जमुई के लोगों के लिए गर्व का दिन है। आज देश के एक करोड़ लोग टेक्नालॉजी के माध्यम से हमारे इस कार्यक्रम से जुड़े हैं, जमुई से जुड़े हैं, मैं सभी का अभिनंदन करता हूं। अभी मुझे यहां भगवान बिरसा मुंडा के वंशज श्री बुद्धराम मुंडा जी का भी स्वागत सत्कार करने का सौभाग्य मिला है। सिद्धू कान्हू जी के वंशज श्री मंडल मुर्मू जी का भी मुझे कुछ दिन पहले ही सत्कार करने का सौभाग्य मिला था। उनकी उपस्थिति से इस आयोजन की इस आयोजन की शोभा और बढ़ गई है। धरती आबा बिरसा मुंडा के इस भव्य स्मरण के बीच आज छह हजार करोड़ रुपयों से अधिक की परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण हुआ है। इनमें मेरे आदिवासी भाई-बहनों के लिए करीब डेढ़ लाख पक्के घरों के स्वीकृति पत्र हैं। आदिवासी बच्चों का भविष्य संवारने वाले स्कूल हैं, हॉस्टल हैं, आदिवासी महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, आदिवासी क्षेत्रों को जोड़ने वाली सैंकड़ों किलोमीटर की सड़के हैं। आदिवासी सांस्कृति को समर्पित म्यूजियम है, रिसर्च सेंटर हैं। आज 11 हजार से अधिक आदिवासी परिवारों का अपने नए घर में देव दीपावली के दिन गृह प्रवेश भी हो रहा है। मैं सभी जनजातीय परिवारजनों को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
——————————
आज जब हम जनजातीय गौरव दिवस मना रहे हैं। आज जब हम जनजातीय गौरव वर्ष की शुरूआत कर रहे हैं। तब यह समझना भी बहुत जरूरी है कि इस आयोजन की आवश्यकता क्यों हुई। यह इतिहास के एक बहुत बड़े अन्याय को दूर करने का एक ईमानदार प्रयास है। आजादी के बाद आदिवासी समाज के योगदान को इतिहास में वो स्थान नहीं दिया गया, जिसका मेरा आदिवासी समाज हकदार था। आदिवासी समाज वो है, जिसने राजकुमार राम को भगवान राम बनाया। आदिवासी समाज वो है जिसने भारत के संस्कृति और आजादी की रक्षा के लिए सैंकड़ों वर्षों की लड़ाई को नेतृत्व दिया। लेकिन आजादी के बाद के दशकों में आदिवासी इतिहास के इस अनमोल योगदान को मिटाने की कोशिशें की गई। इसके पीछे भी स्वार्थ भरी राजनीति थी। राजनीति ये कि भारत की आजादी के लिए सिर्फ एक ही दल को श्रेय दिया जाए। लेकिन अगर एक ही दल, एक ही परिवार ने आजादी दिलाई। तो भगवान बिरसा मुंडा का उलगुनान आंदोलन क्यों हुआ था? संथाल क्रांति क्या थी? कोल क्रांति क्या थी? क्या हम महाराणा प्रताप के साथी उन रणबांकुरे भिलों को भूल सकते हैं क्या? कौन भूल सकता है? सह्याद्री के घने जंगलों में छत्रपति शिवाजी महाराज को ताकत देने वाले जनजातीय भाई बहनों को कौन भूल सकता है? अल्लूरी सीताराम राजू जी के नेतृत्व में आदिवासियों द्वारा की गई भारत माता की सेवा को तिलका मांझी, सिद्धू कान्हू, बुधू भगत, धीरज सिंह, तेलंगा खड़िया, गोविंद गुरु, तेलंगाना के राम जी गोंड, एमपी के बादल भोई राजा शंकर शाह, कुमार रघुनाथ शाह! मैं कितने ही नाम लो टंट्या भील, निलांबर –पितांबर, वीर नारायण सिंह, दीवा किशन सोरेन, जात्रा भरत, लक्ष्मण नाईक, मिजोरम की महान स्वतंत्रता सेनानी, रोपुइलियानी जी, राजमोहिनी देवी, रानी गाइदिन्ल्यू, वीर बालिका कालीबाई, गोंडवाना की रानी दुर्गावती। ऐसे असंख्य, असंख्य मेरे आदिवासी मेरे जनजातीय शूरवीरों को कोई भुला सकता है क्या? मानगढ़ में अंग्रेजों ने जो नरसंहार किया था? हजारों मेरे आदिवासी भाई बहनों को मौत के घाट उतार दिया गया था। क्या हम उसे भूल सकते हैं?
पीएम जनमन योजना की चर्चा
संस्कृति हो या फिर सामाजिक न्याय, आज की एनडीए सरकार का मानस कुछ अलग ही है। मैं इसे भाजपा ही नहीं बल्कि एनडीए का सौभाग्य मानता हूं कि हमें द्रोपदी मुर्मु जी को राष्ट्रपति बनाने का अवसर मिला। वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति है। मुझे याद है जब एनडीए ने द्रौपदी मुर्मु जी का राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना तय किया, तो हमारे नीतीश बाबू ने पूरे देश के लोगों को अपील की थी, कि द्रोपदी मुर्मु जी को भारी मतों से जीताना चाहिए। आज जिस पीएम जनमन योजना के तहत अनेक काम शुरू हुए हैं। उसका श्रेय भी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु जी को ही जाता है। जब वो झारखंड की राज्यपाल थीं और फिर जब वो राष्ट्रपति बनीं तो अक्सर मुझसे आदिवासियों में भी अति पिछड़ी आदिवासी जनजातियों का जिक्र किया करती थीं। इन अति पिछड़ी आदिवासी जनजातियों की पहले की सरकारों ने कोई परवाह ही नहीं की थी। इनके जीवन से मुश्किलें कम करने के लिए ही 24000 करोड़ रूपये की पीएम जनमन योजना शुरू की गई। पीएम जनमन योजना से देश की सबसे पिछड़ी जनजातियों की बस्तियों का विकास सुनिश्चित हो रहा है। आज इस योजना को 1 साल पूरा हो रहा है। इस दौरान हमने अति पिछड़ी जनजातियों को हजारों पक्के घर दिए हैं। पिछड़ी जनजातियों की बस्तियों को जोड़ने के लिए सैंकड़ों किलोमीटर की सड़कों पर काम शुरू हो चुका है। पिछड़ी जनजातियों के सैकड़ों गांवों में हर घर नल से जल पहुंचा है।
जिनको किसी ने नहीं पूछा मोदी उनको पूजता है। पहले की सरकारों के रवैये के कारण आदिवासी समाज दशकों तक मूल सुविधाओं से वंचित ही रहा। देश के दर्जनों आदिवासी बाहुल्य जिले विकास की गति में बहुत पिछड़ गए थे। अगर किसी अफसर को सजा देनी हो, उसको पनिशमेंट देना हो, तो पनिशमेंट पोस्टिंग भी ऐसे जिलों में की जाती थी। एनडीए सरकार ने पुरानी सरकारों की सोच को बदल दिया। हमने इन जिलों को आकांक्षी जिलें घोषित किया और वहां नए और ऊर्जावान अफसरों को भेजा। मुझे संतोष है, आज कितने ही आकांक्षी जिले विकास के कई पैरामीटर्स पर दूसरे जिलों से भी आगे निकल गए हैं। इसका बहुत बड़ा लाभ मेरे आदिवासी भाई बहनों को हुआ है।
आदिवासी कल्याण हमेशा से एनडीए सरकार की प्राथमिकता रहा है। ये अटल बिहारी वाजपेई जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ही थी, जिसने आदिवासी कल्याण के लिए अलग मंत्रालय बनाया। 10 साल पहले आदिवासी क्षेत्रों आदिवासी परिवारों के विकास के लिए बजट ₹25000 करोड़ रूपयों से भी कम था। 10 साल पहले का हाल देखिए 25 हजार करोड़ से भी कम। हमारी सरकार ने इसको 5 गुना बढ़ाकर सवा लाख करोड़ रुपए पहुंचाया है। अभी कुछ दिन पहले ही देश के साठ हजार से अधिक आदिवासी गांवों के विकास के लिए एक विशेष योजना हमने शुरू की है। धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, इसके तहत करीब 80,000 करोड़ रुपए आदिवासी गांवों में लगाए जाएंगे। इसका मकसद आदिवासी समाज तक जरूरी सुविधाएं पहुंचाने के साथ-साथ, युवाओं के लिए ट्रेनिंग और रोजगार के अवसर बनाने का भी है। इस योजना के तहत जगह-जगह ट्राइबल मार्केटिंग सेंटर बनेंगे। लोगों को होम स्टे बनाने के लिए मदद दी जाएगी, प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे आदिवासी क्षेत्रों में पर्यटन को बल मिलेगा और आज जो इको टूरिज्म की एक परिकल्पना बनी है, वह हमारे जंगलों में आदिवासी परिवारों के बीच में संभव होगा और तब पलायन बंद हो जाएगा, पर्यटन बढ़ता जाएगा।
हमारी सरकार ने आदिवासी विरासत को सहेजने के लिए भी अनेक कदम उठाए हैं। आदिवासी कला संस्कृति के लिए समर्पित अनेक लोगों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। हमने रांची में भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर विशाल संग्रहालय की शुरुआत की। और मेरा तो आग्रह है हमारे सभी स्कूल के विद्यार्थियों को भगवान बिरसा मुंडा का ये जो संग्रहालय बनाया है, उसे जरूर देखना चाहिए, स्टडी करना चाहिए। आज मुझे खुशी है कि आज मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में बादल भोई म्यूजियम और मध्य प्रदेश में ही जबलपुर में राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह संग्रहालय का उद्घाटन हुआ है। आज ही श्रीनगर और सिक्किम में दो आदिवासी रिसर्च सेंटर का भी उद्घाटन हुआ है और आज ही भगवान बिरसा मुंडा जी की याद में स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किए गए हैं। ये प्रयास देश को आदिवासी शौर्य और गौरव की निरंतर याद दिलाते रहेंगे।
आदिवासी समाज का भारत की पुरातन चिकित्सा पद्धति में भी बहुत बड़ा योगदान है। इस धरोहर को भी सुरक्षित किया जा रहा है और भावी पीढ़ी के लिए नए आयाम भी जोड़े जा रहे हैं। एनडीए सरकार ने लेह में National Institute of Sowa Rigpa की स्थापना की है। अरुणाचल प्रदेश में North Eastern Institute of Ayurveda & Folk Medicine Research को अपडेट किया गया है। डब्ल्यूएचओ का ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडीशनल मेडिसिन भी भारत में बन रहा है। इससे भी भारत के आदिवासियों की परंपरागत चिकित्सा पद्धति देश दुनिया तक पहुंचेगी। जनजातीय समाज की पढ़ाई कमाई और दवाई इस पर हमारी सरकार का बहुत जोर है। आज डॉक्टरी हो, इंजीनियरिंग हो, सेना हो, aeroplane pilot हो, हर प्रोफेशन में आदिवासी बेटे बेटियां आगे आ रहे हैं। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि बीते दशक में स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक आदिवासी क्षेत्रों में बेहतर संभावनाएं बनी है। आजादी के छह सात दशक बाद भी देश में एक ही सेंट्रल ट्राईबल यूनिवर्सिटी थी। बीते 10 सालों में एनडीए ने इस सरकार ने दो नई सेंट्रल ट्राइबल यूनिवर्सिटी देश को दी है। इन वर्षों में अनेक डिग्री कॉलेज, अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज, दर्जनों आईटीआई आदिवासी बाहुल्य जिलों में बने हैं। बीते 10 साल में आदिवासी जिलों में 30 नए मेडिकल कॉलेज भी बने हैं और कई मेडिकल कॉलेज पर काम जारी है। यहां जमुई में भी नया मेडिकल कॉलेज बन रहा है। हम देश भर में 700 से अधिक एकलव्य स्कूलों का एक मजबूत नेटवर्क भी बना रहे हैं।
आदिवासी बेटियों के सफलता की चर्चा
मेडिकल, इंजीनियरिंग और टेक्निकल शिक्षा में आदिवासी समाज के सामने भाषा की भी एक बहुत बड़ी समस्या रही है। हमारी सरकार ने मातृभाषा में परीक्षा के विकल्प दिए हैं। इन फैसलों ने आदिवासी समाज के बच्चों को नया हौसला दिया है। उनके सपनों को नए पंख लगाए हैं। बीते 10 साल में आदिवासी नौजवानों ने sports में भी, खेलकूद में भी कमाल किया है। इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत के लिए मेडल जीतने वालों में ट्राइबल खिलाड़ियों का बहुत बड़ा योगदान है। आदिवासी युवाओं की इस प्रतिभा को देखते हुए, जनजातीय क्षेत्रों में खेल सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। खेलो इंडिया अभियान के तहत आधुनिक मैदान स्पोर्ट्स कांप्लेक्स आदिवासी बहुल जिलों में बनाए जा रहे हैं। भारत की पहली नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी भी मणिपुर में बनाई गई है।
भगवान बिरसा मुंडा – अमर रहे, अमर रहे।